जिनका दामन खुद भरा हो दागों से, वो दूसरों के क्या दाग दिखलायेगा, बहुत दे चुके तुम हमको वादों के पुलिंदे, अब और कितना हमको तुम ललचाओगे । हम मौन हैं, अभी मरे नहीं, इस खमोशी का कितना फायदा उठाएंगे अपने हक का बिगुल जनता ने बजा दिया, क्या तब तुम अपनी इस कुर्सी को बचा पाओगे।, जनता नादान है, पर लाचार नहीं, हर खेल तुम्हारा वो सब जानती है, करती वो लोकतंत्र पर विश्वास अभी, तभी तो अब भी तुमको वो मानती है । ©Dayal "दीप, Goswami.. झूठे वादे,,