तेरे रवैये का बदलना लाज़िम था, पर इज़हार करना भी ज़रूरी था। तेरे लहजे में बेरुख़ी भी कायम थी, पर तेरी परवाह करना भी ज़रूरी था। तेरे रूठ जाने की वजह भी जायज़ थी, पर इस दिल का रोना भी ज़रूरी था। तेरा मुड़ के भी ना देखना भी ठीक था, पर तुझपर ए'तिबार करना भी ज़रूरी था। तेरा यूँ ख़ामोश होकर भी बहुत कुछ कहना वफ़ा थी, पर तेरा ख़याल कर तुझसे दूर रहना भी ज़रूरी था। तेरी बेख़याली में भी मेरा ख़याल करना, प्यार था, और इस प्यार पर मेरा हक़ जनता,बेहद ज़रूरी था। #एतिबार #प्यार #हक़ #फ़िक़्र #yqbaba #yqdidi #drgpoems Photo credits : zastavik.com