Nojoto: Largest Storytelling Platform

लड़की बनकर उनको समझना और समाज की नजर से उनको आंकना

लड़की बनकर उनको समझना और समाज की नजर से उनको आंकना। दोनों देखने में एक जैसे लग सकते हैं, तुम्हें....
लेकिन दोनों में फर्क है, सबने लड़कियों को अपने वश में रखना चाहा कभी मर्यादा के नाम पर। कभी संस्कारों की चादर थमा कर ।उन्हे अपने अधिपत्य में ही रखना चाहा..,.. तुम कितना भी कहलो कि ऐसा नहीं है, लेकिन कही न कहीं तुम्हारे मस्तिष्क में भी पित्तसत्ता का चोला ओढ़ा है। तुम नकारना चाहो तब भी यह सत्य नही बदलेगा।
तब तब तुमने कहा वो आजाद हैं, तुम्हारी ही बात पर विश्वास कर ,जब किसी उन्मादी प्रेमी के प्रेम प्रस्ताव को उन्होंने नकारा है,
मोल उन्हें अपने चेहरे पर तेज़ाब की बौछार से चुकाया है। 
तब तब लगा पुरुष को परास्त हो रहा उनका पोरुष्य स्त्रीदेह को छलनी करने में भी न धिक्कार हुआ उनको। अनेक उदाहरण भरे पड़े हैं।
छोड़ो तुम तुमको क्या लेना? पतवार बनाकर उसको अन्याय के सागर में तुमने भी तो धकेला है।
हैरत तो यह है कि लड़की ने ही,लड़की की आजादी पर प्रश्न उठाया है। जब नारी ही न समझ सकी उसकी वेदना। पुरुष क्या समझेगा उसके मन की पीड़ा।

©Ruksar Bano
  #Ladki #womenempowerment #feminismisequality #unityisstrength