मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया कबड्डी,खो-खो,अंताक्षरी लूडो गिली-डंडा मोबाइल में बंद हो गया जब एक टेलीफोन था! तो ? सब बारी बारी परिवार में बात करते थे मोबाइल आते ही एक परिवार पता ही नहीं चला कब अपने ही घर में अजनबी हो गया कभी लौट जाता हूं अपने बचपन में देखता हूं खुद को तो कभी निहारता हूं एक बार इस जमाने को आह भरकर कहता हूं ओह मेरे देश के नौजवानों को ये क्या हो गया जहाँ मां पापा के ₹1 वाली अमीरी थी वहाँ आज चिलम गुटखा बीड़ी बियर हो गया कोई बताए आज के युवाओं को क्या हो गया मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया संसार की सारी गालियाँ बनी है औरतों पर बेटियों पर मां पर और बहनों पर यह युवा कब से,रिश्तों का जानवर हो गया मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया डर लगता था कोई ऐसी वैसी बात करने पर हमें , डर लगता था ! ऐसी वैसी बात करने पर हमें अपने ही घर में, आज का युवा पीढ़ी पीरियड प्रेगनेंसी तक पहुंच गया मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया देखूँ जो 20 वीं सदी में चारों ओर नजर घुमाकर तो लड़की-लड़का और लड़का-लड़की हो गया पता ही नहीं लगा सूट सलवार और साड़ी कब फटी निकर टॉप और जींस हो गया वह बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया मेरी सादगी वाली कटिंग अन्नास स्टाइल में तब्दील हो गया जहां होती थी मुँछे मर्दों की शान वहां दाढ़ी वाला बाबा बियर्ड हो गया यह मेरे देश के नौजवानों को क्या हो गया मेरे बचपन से बढ़ते हुए युवाओं की अमीरी ऩ? जाने कहां खो गया ये मेरे देश के नवयुवाओं को क्या हो गया ये मेरे देश के नवयुवाओं को क्या हो गया ब्रजेश कुमार मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया मेरे बचपन वाला अमीरी न जाने कहां खो गया कबड्डी,खो-खो,अंताक्षरी लूडो गिली-डंडा मोबाइल में बंद हो गया जब एक टेलीफोन था! तो ? सब बारी बारी परिवार में बात करते थे मोबाइल आते ही एक परिवार पता ही नहीं चला कब अपने ही घर में अजनबी हो गया