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कैसे जाहिर अब जज़्बात करूँ,आईने!और कितनी बात करूँ।

कैसे जाहिर अब जज़्बात करूँ,आईने!और कितनी बात करूँ।
तुझे देखूं या ना तू बता,तेरे ख़याल रुकें तो तुझसे बात करूँ।

मोमबत्तियों की शक्ल ले ली है अब तो इन मशालों ने।
कोई चराग़ नज़र आए कहीं तो उससे रौशनी की बात करूँ।

तख्त पर बैठा वो सोचता है,मिट्टी बेचने की खातिर।
सोचता हूँ उसे मिट्टी से मिला कर ज़मीनी बात करूँ।

मेरे शहर की गलियों में सियासी तन्हाइयों का डेरा है।
घर ढूंढने निकलूँ उसका या किसी कश्मीरी की बात करूँ।

आगाज़ तो बहुत सारे दिखाई देते है हर तरफ़।
कोई अंजाम मिले तो फिर जादूगरी की बात करूँ।

ख़ैर छोड़ ये ज़माना, आदित्य अब सोने चल।
फिर कभी तुझसे और, कोई ज़रूरी बात करूँ। कैसे जाहिर अब #जज़्बात करूँ,आईने!और कितनी बात करूँ।
तुझे देखूं या ना तू बता,तेरे ख़याल रुकें तो तुझसे बात करूँ।

मोमबत्तियों की शक्ल ले ली है अब तो इन मशालों ने।
कोई #चराग़ नज़र आए कहीं तो उससे #रौशनी की बात करूँ।

तख्त पर बैठा वो सोचता है,#मिट्टी बेचने की खातिर।
सोचता हूँ उसे मिट्टी से मिला कर #ज़मीनी बात करूँ।
कैसे जाहिर अब जज़्बात करूँ,आईने!और कितनी बात करूँ।
तुझे देखूं या ना तू बता,तेरे ख़याल रुकें तो तुझसे बात करूँ।

मोमबत्तियों की शक्ल ले ली है अब तो इन मशालों ने।
कोई चराग़ नज़र आए कहीं तो उससे रौशनी की बात करूँ।

तख्त पर बैठा वो सोचता है,मिट्टी बेचने की खातिर।
सोचता हूँ उसे मिट्टी से मिला कर ज़मीनी बात करूँ।

मेरे शहर की गलियों में सियासी तन्हाइयों का डेरा है।
घर ढूंढने निकलूँ उसका या किसी कश्मीरी की बात करूँ।

आगाज़ तो बहुत सारे दिखाई देते है हर तरफ़।
कोई अंजाम मिले तो फिर जादूगरी की बात करूँ।

ख़ैर छोड़ ये ज़माना, आदित्य अब सोने चल।
फिर कभी तुझसे और, कोई ज़रूरी बात करूँ। कैसे जाहिर अब #जज़्बात करूँ,आईने!और कितनी बात करूँ।
तुझे देखूं या ना तू बता,तेरे ख़याल रुकें तो तुझसे बात करूँ।

मोमबत्तियों की शक्ल ले ली है अब तो इन मशालों ने।
कोई #चराग़ नज़र आए कहीं तो उससे #रौशनी की बात करूँ।

तख्त पर बैठा वो सोचता है,#मिट्टी बेचने की खातिर।
सोचता हूँ उसे मिट्टी से मिला कर #ज़मीनी बात करूँ।