मात - पिता को कबहुँ न देखा माटी में जन्मीं , माटी ने प्रेम दिया। कहूँ - मानूं अब किसे मैं अपना हृदय बीच साँवरे को बसा लिया। करूँ कासे हृदय की सारी बतिया माटी से साँवरे की छवि बना लिया। उन्हें कहूँ नाथ, वही पिय मोरा