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मात - पिता को कबहुँ न देखा माटी में जन्मीं , म

 मात - पिता  को  कबहुँ  न  देखा
माटी में जन्मीं , माटी ने प्रेम दिया।
कहूँ - मानूं अब  किसे  मैं अपना
हृदय बीच साँवरे को बसा लिया।

करूँ कासे हृदय की सारी बतिया 
माटी से साँवरे की छवि बना लिया।
उन्हें  कहूँ  नाथ, वही  पिय  मोरा
 मात - पिता  को  कबहुँ  न  देखा
माटी में जन्मीं , माटी ने प्रेम दिया।
कहूँ - मानूं अब  किसे  मैं अपना
हृदय बीच साँवरे को बसा लिया।

करूँ कासे हृदय की सारी बतिया 
माटी से साँवरे की छवि बना लिया।
उन्हें  कहूँ  नाथ, वही  पिय  मोरा