दंगों की आग में शहर जल रहा था , और नफरतों का ज्वालामुखी आग उगल रहा था। सियासत दान चिताओं पर आपनी रोटियां सेक रहे थे , और उन्माद का बिगुल बज रहा था। उन्हें इससे क्या मतलब , किसकी जान गई किसका हाथ पैर कटा , किस की दुनिया उजड़ गई। नन्हीं सी जान बलि चल गई आतताइयो की, आंखों के सामने किसी का घर तो किसी का भाग जल रहा था। ©Anuj Ray दंगों की आग में शहर जल रहा था