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आज हर गली, मोहल्ले, बाजार, और चौराहों पर अलग-अलग र

आज हर गली, मोहल्ले,
बाजार, और चौराहों पर
अलग-अलग रावण बन रहें हैं।
लाल, नीले, हरे, पीले,
बड़े, छोटे, स्थुल, विशाल,
नये, आदमकद एवम विकराल।
सभी मैदान एवम चौराहों पर सज रहे हैं।

लोग कह रहे हैं -
ये रावण प्रतीक है बुराइयों का।
जो समाज में व्याप्त है,
पूंजीवाद, जातिवाद, वंशवाद के रूप में।
यह फैला है,
गरीबी, अशिक्षा, एवम भूख के स्वरूप में।

मंचासीन प्रबुद्ध नेता जी ने रावण जलाया,
साथ ही अपने उद्बोधन में बताया,
हम रावण नहीं, रावण के रूप में,
बुराईयों के प्रतीक को जला रहें है,
और यह हम सदियों से करते आ रहे हैं।

परन्तु,
दृढ़ इच्छाशक्ति (राम) के अभाव में,
स्वार्थ (आंतरिक रावण) के प्रभाव में,
हम, 
मात्र अपनी परम्पराओं को निभा रहे हैं।

रावण नहीं,
मात्र उसके प्रतीक को ही जला रहें हैं।
हम रावण नहीं,
मात्र उसके प्रतीक को ही जला रहें है।

©Madhusudan Shrivastava हम रावण के प्रतीक को ही जला रहे हैं।

#Dussehra
आज हर गली, मोहल्ले,
बाजार, और चौराहों पर
अलग-अलग रावण बन रहें हैं।
लाल, नीले, हरे, पीले,
बड़े, छोटे, स्थुल, विशाल,
नये, आदमकद एवम विकराल।
सभी मैदान एवम चौराहों पर सज रहे हैं।

लोग कह रहे हैं -
ये रावण प्रतीक है बुराइयों का।
जो समाज में व्याप्त है,
पूंजीवाद, जातिवाद, वंशवाद के रूप में।
यह फैला है,
गरीबी, अशिक्षा, एवम भूख के स्वरूप में।

मंचासीन प्रबुद्ध नेता जी ने रावण जलाया,
साथ ही अपने उद्बोधन में बताया,
हम रावण नहीं, रावण के रूप में,
बुराईयों के प्रतीक को जला रहें है,
और यह हम सदियों से करते आ रहे हैं।

परन्तु,
दृढ़ इच्छाशक्ति (राम) के अभाव में,
स्वार्थ (आंतरिक रावण) के प्रभाव में,
हम, 
मात्र अपनी परम्पराओं को निभा रहे हैं।

रावण नहीं,
मात्र उसके प्रतीक को ही जला रहें हैं।
हम रावण नहीं,
मात्र उसके प्रतीक को ही जला रहें है।

©Madhusudan Shrivastava हम रावण के प्रतीक को ही जला रहे हैं।

#Dussehra

हम रावण के प्रतीक को ही जला रहे हैं। #Dussehra #कविता