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कल शाम को घटा जब घनघोर छा रही थी! बिजली तड़प तड़प के

कल शाम को घटा जब घनघोर छा रही थी!
बिजली तड़प तड़प के आँखें दिखा रही थी।
बेचैन मेरी नज़रें दहलीज़ पर गईं तो !
चुपके से तेरी आहट चौखट बजा रही थी।

आँखों में जागे अरमाँ पलकों में ख़्वाब आए!
तेरी  राह  देखते  हम  दहलीज़ लांघ आए।
बहती हुई हवा का इक झोंका छूके निकला,
हमको  लगाकि  तेरी  सरहद  में पाँव आए।

चाहत की दौड़ में हम बस दौड़ते रहे हैं।
ना जाने कितने बंधन बस तोड़ते रहे हैं।
राधा मिली न मीरा बस गोपियों के मेले!
मधुवन में जैसे माधव मन जोड़ते रहे हैं। 🎀 Challenge-451 #collabwithकोराकाग़ज़

🎀 इस विषय को अपने शब्दों से सजाइए। 

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🎀 अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।
कल शाम को घटा जब घनघोर छा रही थी!
बिजली तड़प तड़प के आँखें दिखा रही थी।
बेचैन मेरी नज़रें दहलीज़ पर गईं तो !
चुपके से तेरी आहट चौखट बजा रही थी।

आँखों में जागे अरमाँ पलकों में ख़्वाब आए!
तेरी  राह  देखते  हम  दहलीज़ लांघ आए।
बहती हुई हवा का इक झोंका छूके निकला,
हमको  लगाकि  तेरी  सरहद  में पाँव आए।

चाहत की दौड़ में हम बस दौड़ते रहे हैं।
ना जाने कितने बंधन बस तोड़ते रहे हैं।
राधा मिली न मीरा बस गोपियों के मेले!
मधुवन में जैसे माधव मन जोड़ते रहे हैं। 🎀 Challenge-451 #collabwithकोराकाग़ज़

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