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फूल उसी रंग ओ बू के लेके कोई फिर से आ मिला है भूली

फूल उसी रंग ओ बू के लेके कोई फिर से आ मिला है
भूली राहों संग टहलने का शुरू फिर से सिलसिला है
.
कि इक़ गुलाब सुर्ख अब भी महकता है
भीगी शबनम सा वो अब भी बरसता है
. सिलसिला
फूल उसी रंग ओ बू के लेके कोई फिर से आ मिला है
भूली राहों संग टहलने का शुरू फिर से सिलसिला है
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कि इक़ गुलाब सुर्ख अब भी महकता है
भीगी शबनम सा वो अब भी बरसता है
. सिलसिला