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तुम सूक्ष्म भी हो विराट भी, जब यात्रा भीतर की हो

तुम सूक्ष्म भी हो विराट भी, 
जब यात्रा भीतर की हो तो तुम पाते हो कि असंख्य आकाश गंगाएं तुम्हारे भीतर हैं तब स्वयं को विराट पाते हो, और जब यात्रा बाह्य होती है तुम समस्त सृष्टि में विशाल ब्रम्हण्ड में खुद को नगण्य, अति सूक्ष्म पाते हो..!!!
क्योंकि तुम केंद्र में हो यात्राएं किस दिशा में है इस पर निर्भर है आपका अनुभव, 
ईश्वर इसलिए सूक्ष्म भी है और विराट भी
'मनु' विराट
तुम सूक्ष्म भी हो विराट भी, 
जब यात्रा भीतर की हो तो तुम पाते हो कि असंख्य आकाश गंगाएं तुम्हारे भीतर हैं तब स्वयं को विराट पाते हो, और जब यात्रा बाह्य होती है तुम समस्त सृष्टि में विशाल ब्रम्हण्ड में खुद को नगण्य, अति सूक्ष्म पाते हो..!!!
क्योंकि तुम केंद्र में हो यात्राएं किस दिशा में है इस पर निर्भर है आपका अनुभव, 
ईश्वर इसलिए सूक्ष्म भी है और विराट भी
'मनु' विराट