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किसे मंजूर। ये झुलसते दोपहर और सूखे सजर, किसे मंजू

किसे मंजूर।
ये झुलसते दोपहर और सूखे सजर,
किसे मंजूर।
क्या इल्तेजा और क्या शिकवे मगर,
पी रहे हर घुट चाहे अब लगे जहर,
किसे मंजूर।
बेअसर है कमबख्त लब के फासले,
मजबूर हैं तुमसे इक बात के सब्र में,
किसे मंजूर।
तू ही आ देख हालात जख्म दिल की,
छीन ले गया है कोई चेहरे की खुशी,
किसे मंजूर।
       –@कमली ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_399 

👉 कलेजा छलनी होना मुहावरे का अर्थ - बहुत दुख होना 

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किसे मंजूर।
ये झुलसते दोपहर और सूखे सजर,
किसे मंजूर।
क्या इल्तेजा और क्या शिकवे मगर,
पी रहे हर घुट चाहे अब लगे जहर,
किसे मंजूर।
बेअसर है कमबख्त लब के फासले,
मजबूर हैं तुमसे इक बात के सब्र में,
किसे मंजूर।
तू ही आ देख हालात जख्म दिल की,
छीन ले गया है कोई चेहरे की खुशी,
किसे मंजूर।
       –@कमली ♥️ आइए लिखते हैं #मुहावरेवालीरचना_399 

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