मौत इतनी ख़ुशनसीब होगी कभी यूँ सोचा न था सारी उम्र की तनहाई रुसवाई पल में मिट जायेगी सोचा न था संग जिन के लिये बरसों तरसता रहा आज सब वही मुझको घेरे हुए तन मेरा सहला रहे शाल कंबल सफ़ेद वस्त्र चादर ओड़ा रहे और गले ऊपर गुलाब माला डाल फूल भी बरसा रहे प्यार की इस चाहत को जाने कब से तड़पता रहा आज देखो आँखें नम सबकी कंधे बदलकर ले जा रहे संग चलने के लिये जो नया बहाने बना दिया करते थे देख रहा हूँ उनको शमशान तक नंगे पाँव चले जा रहे यादगार हसीन मंज़र देखकर रूह को मेरी गुमा हो रहा खमाखां यूँ ही मौत से मेरी बिन बात दिन रात गबरा रहा 🌹M S SINGH🌹✍️🤔 ©Mahadev Son Towards new journey #humantouch