''सांत्वना'' थक गया हूं मैं लोगों को बता के, कि मैं ठीक हूं। न जाने क्यों हर रोज लोग, मरहम लगाने आ जाते हैं।। माना कि जो जख्म मुझे मिलने थे , पर मिले नहीं। न जाने क्यों वो जख्म, सांत्वना की छीनी से खुरेद दिए जाते हैं।। थक गया हूं............. आ जाते हैं।। आदत कुछ ऐसी है कि, खुश होता हूं तो मंदिर चला जाता हूं। ना जाने ये अच्छे लोग , मुझे पकड़ के वैद्य के पास क्यों चले जाते हैं।। थक गया हूं............. आ जाते हैं।। माना की बूंद आसमान से गिरी, पर सफर उसका आसां न था। गिर पड़ी बूंद सीप के मुंह, गई बन मोती, न जाने ये इतिहासकार , भेजें कि मुझे आसमां।। ©Kaushal Kuldee¶✒️ #सांत्वना