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''सांत्वना'' थक गया हूं मैं लोगों को बता के, क

''सांत्वना''
थक गया हूं मैं लोगों को बता के,
    कि मैं ठीक हूं।
न जाने क्यों हर रोज लोग,
                     मरहम लगाने आ जाते हैं।।
माना कि जो जख्म मुझे मिलने थे ,
      पर मिले नहीं।
न जाने क्यों वो जख्म, 
सांत्वना की छीनी से खुरेद दिए जाते हैं।।
थक गया हूं............. आ जाते हैं।।
आदत कुछ ऐसी है कि,
 खुश होता हूं तो मंदिर चला जाता हूं।
 ना जाने ये अच्छे लोग ,
मुझे पकड़ के वैद्य के पास क्यों चले जाते हैं।।
थक गया हूं............. आ जाते हैं।।
माना की बूंद आसमान से गिरी,
         पर सफर उसका आसां न था।
गिर पड़ी बूंद सीप के मुंह, गई बन मोती,
न जाने ये इतिहासकार ,
भेजें कि मुझे आसमां।।

©Kaushal Kuldee¶✒️ #सांत्वना
''सांत्वना''
थक गया हूं मैं लोगों को बता के,
    कि मैं ठीक हूं।
न जाने क्यों हर रोज लोग,
                     मरहम लगाने आ जाते हैं।।
माना कि जो जख्म मुझे मिलने थे ,
      पर मिले नहीं।
न जाने क्यों वो जख्म, 
सांत्वना की छीनी से खुरेद दिए जाते हैं।।
थक गया हूं............. आ जाते हैं।।
आदत कुछ ऐसी है कि,
 खुश होता हूं तो मंदिर चला जाता हूं।
 ना जाने ये अच्छे लोग ,
मुझे पकड़ के वैद्य के पास क्यों चले जाते हैं।।
थक गया हूं............. आ जाते हैं।।
माना की बूंद आसमान से गिरी,
         पर सफर उसका आसां न था।
गिर पड़ी बूंद सीप के मुंह, गई बन मोती,
न जाने ये इतिहासकार ,
भेजें कि मुझे आसमां।।

©Kaushal Kuldee¶✒️ #सांत्वना