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संपादक जी का फोन आया। हड़बड़ाकर मैंने उठाया। छूटते

संपादक जी का फोन आया। 
हड़बड़ाकर मैंने उठाया। 
छूटते पूछे 'किधर हो?'
'छोड़ा आपने जिधर है'। 
बोले 'परचा भर दो'।
मैंने कहा 
'मुख्यमंत्री की कुर्सी किधर है?'

राजीव उपाध्याय

©Rajeev Upadhyay संपादक जी का फोन आया। 
हड़बड़ाकर मैंने उठाया। 
छूटते पूछे 'किधर हो?'
'छोड़ा आपने जिधर है'। 
बोले 'परचा भर दो'।
मैंने कहा 
'मुख्यमंत्री की कुर्सी किधर है?'
संपादक जी का फोन आया। 
हड़बड़ाकर मैंने उठाया। 
छूटते पूछे 'किधर हो?'
'छोड़ा आपने जिधर है'। 
बोले 'परचा भर दो'।
मैंने कहा 
'मुख्यमंत्री की कुर्सी किधर है?'

राजीव उपाध्याय

©Rajeev Upadhyay संपादक जी का फोन आया। 
हड़बड़ाकर मैंने उठाया। 
छूटते पूछे 'किधर हो?'
'छोड़ा आपने जिधर है'। 
बोले 'परचा भर दो'।
मैंने कहा 
'मुख्यमंत्री की कुर्सी किधर है?'

संपादक जी का फोन आया। हड़बड़ाकर मैंने उठाया। छूटते पूछे 'किधर हो?' 'छोड़ा आपने जिधर है'। बोले 'परचा भर दो'। मैंने कहा 'मुख्यमंत्री की कुर्सी किधर है?' #Winter #कविता