कर सके जो वो बात कर, चल सके जिसपर वो राह चुन। साथ न दे कोई तो इल्म कर, कारवां बन सके वो जतन कर। यह दुनिया फितरत समझती है, समझने के लिये बात कर। इकतरफा तो कुछ भी नही है, किसी मुकाम से पहले तय कर, यह दुनिया जीतने को बनी है। हारना तेरी शागिर्द नही है, जीतने के लिये संघर्स कर। लोगो का क्या कहना है? यह मत समझ समझकर, इबादत से पहले कर्म कर। कर्म की रश्मियों को समझकर, "संजीव" अपना मुकाम हासिल कर। बाबा कविता#