घर बदल कर भी देखा, पर सुकून न मिला जाति,मजहब बदला,पर बदला खून न मिला रवायतों,किताबों से चलते रह गये हम, कमलेश नया रस्ता बनाने का किसी में भी जूनून न मिला। छोटा -बड़ा, ऊंच -नीच दिमागी बीमारी है महज क्या जीने का हमें, इससे बेहतर मजमून न मिला झपटने, नोंचने की महारत सबने हासिल की है शख्स कोई भी ऐसा नहीं, जिसके नाख़ून न मिला ©Kamlesh Kandpal #sukun