लफ़्ज़ थे या तीर कोई चुभ गया, कट गई रुह शीशा-ए-दिल दुख गया।। उससे ही आबाद था दिल का जहां, बेमुरव्वत तोड़ के दिल रख गया।। ले गया ख़्वाबों कि दुनिया में कहीं, और ग़मों से दिल कि निस्बत लिख गया।। अपनों के हाथों में ही देखी है कमां, अपने साये से भरोसा उठ गया।। बढ़ गयी कुछ और सीने में जलन, दिल का दीपक जलते जलते बुझ गया।। अब मनाएं जश्न कि मातम करें? इस सफ़र में कुछ मिला,सब कुछ गया।। #yqaliem #yqodiapoetry #lafz_e_alfaz #teer_kamaan #sheesha_e_dil #matam