#डर अजीब सा अंधेरा है दीये को ख़ंजर ने घेरा है संभाल ले अपनी तकरीरें अभी डर का बसेरा है उन्हें फूल भी नसीब नहीं होंगें जिन्होंने मेरे गुलशन को तोड़ा है ये जो फिर रहे हैं ज्यादा दुआएं देते इन्ही ने बहती धार को रोका है वक़्त तो दोनों जहाँ को मुआफ़ नही करता सोचता है ,इसने अज़ाब को रोका है इंतजार के सिवा कोई कुछ नही बोलता क़यामत सी खामोशी को किसने देखा है