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भरी आंखों में न जाने क्या? बेवजह तिनका पड़ जाता है

भरी आंखों में न जाने क्या?
बेवजह तिनका पड़ जाता है।
 
जब नन्ही बिटिया का हाथ छुड़ा
रोजाना कार्यालय जाना होता है।। 

भर आती हैं आंखें, 
समंदर में उफान की तरह। 
जब आता देख मुझे घर की ओर 
भाग कर वह गले से चिपक जाती है ।।

बोलती कुछ भी नहीं मुझे,
पर एहसास अपनी खुशी का करा देती है। 
वो बेटी है मेरी वो 'सब' समझ जाती है ।।

मेरी गैरहाजिरी में मेरी बड़ी बेटी
बड़ी शिद्दत से सारे फर्ज निभाती है।
वह रखती है ध्यान अपनी छोटी बहन का
वो 'मां' उसकी बन जाती है।।
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स्वरचित रचना 
नीलम विश्वकर्मा

©Andaaz bayan
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