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गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः । प्रसाद

गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः । 
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ॥
भावार्थ :
गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है
न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से।
राजमहल के शिखर पर बैठ जाने पर भी
कौआ गरुड़ नहीं बनता।।

 चाणक्य नीति 🌻

©Imrktivari__11 Chankya

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गुणैरुत्तमतां यान्ति नोच्चैरासनसंस्थितैः । 
प्रसादशिखरस्थोऽपि किं काको गरुडायते ॥
भावार्थ :
गुणों से ही मनुष्य बड़ा बनता है
न कि किसी ऊंचे स्थान पर बैठ जाने से।
राजमहल के शिखर पर बैठ जाने पर भी
कौआ गरुड़ नहीं बनता।।

 चाणक्य नीति 🌻

©Imrktivari__11 Chankya

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