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सुनो तुम कोरोना की इस आँधी में, जहाँ मौसम का नही

सुनो तुम 
कोरोना की इस आँधी में,
जहाँ मौसम का नही ठिकाना।
कभी आँसुओ की बारिश है,
कभीअपनो से बिछोह की तपिश।
कभी स्वांसों की शिथिलता ,
और ठिठुरन।
अनिश्चित है अब ज़िन्दगी का मौसम।
सोचा क्या करूँ एकान्त में बैठ,
कलम की सलाई, और कागज की डोरी,
बस हाथ में लिए हर क्षण,
ख़यालो का एक स्वेटर बुन रही हूँ।
और इस स्वेटर में बदलते मौसम सी,
ज़िन्दगी के हर रंग भर रही हूँ।
तुम्हारें साथ बिताए वो हर पल,
मोतियों से जड़े है ।
प्यार,और एहसास, से भरा ये स्वेटर,
पहन लेना इसे जब,----–------
अकेलेपन की ठिठुरन में खुद को पाओ,
ओढ़ लेना इसे जब आँसुओ में भीग जाओ,
ढक लेना खुद को इससे जब,
संघर्षो के तूफा में घिरा खुद को पाओ।
ये महज ख़यालो का फूलदान नही,
मेरे न होने पर मेरे होने का एहसास होगा।
रखना दिल में बसाकर इसे ,
इसमें जिन्दा मेरी साँसों का आभास होगा।
ये ख़यालो से बुना खूबसूरत तोहफा है,
तुम्हारे लिए,
जो मेरी साँसे बंद हो जाने पर भी,
खुशबू बन तुम्हारी यादों में जिंदा होगा।
कविता जयेश पनोत
Insta id kavitapanot

©Kavita jayesh Panot #कोरोना#अनियमितता#ज़िन्दगी
सुनो तुम 
कोरोना की इस आँधी में,
जहाँ मौसम का नही ठिकाना।
कभी आँसुओ की बारिश है,
कभीअपनो से बिछोह की तपिश।
कभी स्वांसों की शिथिलता ,
और ठिठुरन।
अनिश्चित है अब ज़िन्दगी का मौसम।
सोचा क्या करूँ एकान्त में बैठ,
कलम की सलाई, और कागज की डोरी,
बस हाथ में लिए हर क्षण,
ख़यालो का एक स्वेटर बुन रही हूँ।
और इस स्वेटर में बदलते मौसम सी,
ज़िन्दगी के हर रंग भर रही हूँ।
तुम्हारें साथ बिताए वो हर पल,
मोतियों से जड़े है ।
प्यार,और एहसास, से भरा ये स्वेटर,
पहन लेना इसे जब,----–------
अकेलेपन की ठिठुरन में खुद को पाओ,
ओढ़ लेना इसे जब आँसुओ में भीग जाओ,
ढक लेना खुद को इससे जब,
संघर्षो के तूफा में घिरा खुद को पाओ।
ये महज ख़यालो का फूलदान नही,
मेरे न होने पर मेरे होने का एहसास होगा।
रखना दिल में बसाकर इसे ,
इसमें जिन्दा मेरी साँसों का आभास होगा।
ये ख़यालो से बुना खूबसूरत तोहफा है,
तुम्हारे लिए,
जो मेरी साँसे बंद हो जाने पर भी,
खुशबू बन तुम्हारी यादों में जिंदा होगा।
कविता जयेश पनोत
Insta id kavitapanot

©Kavita jayesh Panot #कोरोना#अनियमितता#ज़िन्दगी