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सामने मंज़िल थी और, मेरे और सपनो के दर्मियॉ बस चन्द

सामने मंज़िल थी और, मेरे और सपनो के दर्मियॉ बस चन्द फासले ही कम थे
सामने मंजिल थी और हम थे,

गुमान कि खाई निगल ही जाती सारी शौरहत मेरी भी
ग़र जमीं से ज़रा उखड़े हुए होते जो मेरे कदम थे। कि
सामने मंज़िल थी और, मेरे और सपनो के दर्मियॉ बस चन्द फासले ही कम थे
सामने मंजिल थी और हम थे,

गुमान कि खाई निगल ही जाती सारी शौरहत मेरी भी
ग़र जमीं से ज़रा उखड़े हुए होते जो मेरे कदम थे। कि
ankitmishra4564

Ankit Mishra

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