उसको अपना चाँद समझकर खुशियों के तू बाग़ लगाए लेकिन कैसी ये दस्तूरी उनमें एक भी फूल ना आए मन से तेरे, उसके मन का रस्ता देखो, कठिन बड़ा है स्वप्न की सीढ़ी पर इक दौड़ में कर ले सफर तू, पूरी रे मन छू री रे, मन छू री रे मन से क्यूँ है, दूरी रे..??