बिखरते ख़्वाबों से, अब मैं अपनी तक़दीर क्या लिखूँ। टूटा हूँ इस क़दर, मैं अपने इश्क़ की ताबीर क्या लिखूँ। दिल के ज़ख़्मों का, कोई मरहम-ए-इश्क़ न मिला हमें। दर्द की इंतेहा हो गई, मैं अपनी तक़लीफ़ क्या लिखूँ। तेरी नज़रों के वार से हुए घायलों में हम भी शामिल हैं। मेरे सीने में जो चुभा, अब वो तेज धार तीर क्या लिखूँ। तेरी चाहत के प्यासे दिल को, चाहत एक बूँद न मिली। बन बैठा इश्क़ में पागल, अब मैं अपनी पीर क्या लिखूँ। सोचा खुद को तुझसे दूर करके, खुश रहूँगा जीवन में। मुझको तेरी ओर खींचती, अनचाही जंज़ीर क्या लिखूँ। ♥️ Challenge-723 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।