उम्मीद मैंने बेहिसाब देखी । जब एक मजदूरी करते बच्चे के हाथ में किताब देखी । खुशियां को भी झुकना पड़ा उनके आगे जब बच्चों ने सूखी रोटी बाप के हाथ देखी। आंखो में आंसू भला कैसे न आते दो दिन से भूकी बच्चों के लिए खाना मांगती मां देखी। किस्मत से भला उन्हें क्या आश होगी सपने में भी जिसने पेटभर खाने की चाह देखी। # Bhook