दंश (In Caption) Part - I Ch-9 "मैं ने तनु को धमकाया ज़रुर था पर मैं ने सच में कुछ नहीं किया। वो तो उस दिन के बाद कॉलेज भी नहीं आई; और चूंकि मेरे खिलाफ कोई वैसी विडियो भी रिलीज़ नहीं हुई तो मैं संतुष्ट हो गया क्योंकि मुझे ऐसा लगा कि मेरी धमकी काम कर गई थी।" प्रोफ़ेसर एक सुर में सारी दास्तां सुनाए जा रहे थे। अब आप ये हरगिज़ मत सोच लिजिए कि शरीफ़ लोगों का दिल रुई सा नाज़ुक होता है, जो एक थप्पड़ में ही लाइन पर आ जाए, और जो अगर होता भी हो तो प्रोफ़ेसर के मुतल्लिक़ ये बात थोड़ी ग़लत थी। पुलिस स्टेशन लाने के बाद अंगुलियों पर जो न गिना जा सके उतने थप्पड़ और दो घंटे लंबी चली ख़ातिरदारी के बाद भी प्रोफ़ेसर ने मुंह खोलने का नाम नहीं लिया। फिर हमने भी वही तरीका आज़माया जो लोग पुराने वक्त में आज़माते थे; नाख़ून खींचने का ; पर प्रोफ़ेसर हमारी प्लास देखते ही किसी ग्रामोफ़ोन की तरह बजने लगे थे। "यह बात तुम्हारे अलावा और किन - किन लोगों को मालूम थी...?" मैं ने सवाल किया "मिसेज़ अरोरा को..." प्रोफ़ेसर दर्द से कराहते हुए मेरे हर सवाल का जवाब दे रहा था।