क्या करूँ ? मजबूर ही वक़्त हाथों , एक नमी सी इन आंखों मे बची है । निकल सा रहा है वक़्त इस कदर हाथों से जैसे फिसलती हुई रेत । जिंदगी ने दिखा दिया है वो मंजर , जो पहुँचा रही है मेरे चाहने वालों को ठेस । समय नहीं है हाथ मैं , फिर भी मन में एक आस जगी है टूटने लगा है आत्मविश्वास , क्योंकि ये एक मुश्किल घड़ी है ।। बाहर हँसना अंदर रोना अब बर्दास्त नहीं होता । फिर भी दिल मैं सपनों को छूने की प्यास जगी है ।। समझ नहीं आ रहा है की क्या करूँ क्या न करूं फिर भी जिंदगी की समस्याओं से लड़ने की शक्ति बची है । मजबूर हु वक़्त के हाथों , एक नमी सी इन आँखों मे बची है ।। ©Kumar Rahul Life #Drops