कि लोगो ने कितने पत्थर फेंके मुझपर गिराने के लिए,पर मै गिरा क्या । मुझे पाने की चाहत तो यू सबो मे थी,पर मै उन्हे मिला क्या । यू तो पत्थर लेकर तुम भी खड़़ी थी,जमाने की तरह । पर मै खुद को तुझ मे देख रहा था,दीवाने की तरह । वो तो बदकिस्मत थी मेरी जो मै ने खुद को गिरा लिया,तेरे पास आने के लिए । और तुमने कितनी आसानी से कह दिया कि ये पक कर गिरा है, बस खाने के लिए । गलती मेरी थी जो जल्दबाजी मे,मैने खुद को गिरा दिया । मै आसानी से तुझे मिल क्या गया,बस तुम ने अपना औकाद दिखा दिया । जरूरी था कि तुझे भी थोड़ा वक्त देता,पत्थर फेंक कर आजमाने के लिए । कम-से-कम तुझे पता तो चले कितने मेहनत किये होंगे,वो लोग मुझे पाने के लिए । Written By~maxxi