शीर्षक : मनहूस बैसाखी (13 अप्रैल 1919) अनदेखा अनसुना सा बेशक, आया एक तूफान था सुंदर जलियांवाला हिस्सा, उससे क्यू अनजान था जलियांवाला बाग, वैशाखी,को खुद पर ग़ुमान था इसीलिए मनहूस हुई वो, बाग बना शमशान था अंग अंग छलनी कर डाला, बंदूकों की गोली ने निर्दोषों की निर्मम हत्या, की डायर की टोली ने ना जाने कितनों की खुशियां, लूटा उस गोधूलि ने निर्ममता से रंगा था सबको, रक्तपात की होली ने चहुं दिशा से घेर चुकी थी,मनहूसी बैसाखी की तड़प तड़पकर मौत हुई थी,नन्हे-मुन्ने पाखी की आंगन के चिराग बुझे थे, मूल्य चुका उस आंधी की कितनों के सुहाग थे उजड़े, टूटी डोर भी राखी की कितने तो मृत्यु के भय से,घबराकर चिल्लाते थे जान बचाने, अंधे बनकर,कुएं में गिर जाते थे फिर जीवन बेबस होती थी , मरने को मिट जाने को अंतिम क्षण अश्रु छलकाकर, मृत्यु को अपनाते थे लहू सने उस बाग की मिट्टी, चीख चीख कर रोती थी लाशों के अनगिनत ढ़ेर पर, अश्रु बहुत बहोती थी पश्चाताप में जलकर बगिया, खुद ही खुद से पूछी थी दामन में है शोक ये कैसा, मैं तो खुशियाँ बोती थी वैशाखी भी शर्मसार सी ,होकर खुद पर रोती थी जश्न भी देखो बेबस होकर, मातम में ही खोती थी और पूछे वो खुद ही खुद से, आखिर क्यू मनहूस बनी वो, कल तक जो खुद ज्योति थी ©Priya Kumari Niharika #Shayari #story #Poetry #Love #Quote #me #maa Lucky pandit liladhar prashu pandey Raaj Vanshi Bishnu kumar Jha Sushant Rana Firoz Graphic Nishantsharma Raaj Vanshi