सियासत अब झूठ, फ़रेब मक्कारी का पर्याय हो गई है भूखे पेट का ज़िक्र नहीं थाली और हाथ में क्या है ये चर्चा की बात हो रही है बात बेरोजगारी, बदहाली को मिटाने की नहीं विपक्ष को निपटाने की हो रही है विडम्बना है, जो सर्वज्ञ है, सार्वभौम और सनातन है उसे हाथ से पकड़ लाने की बेतुकी, बात हो रही है आख़िरी मौक़ा है देशवासियों के लिए जीत, अहंकार की कपट और छल की या लोकतंत्र और ज़न मन गण की होगी ©हिमांशु Kulshreshtha सियासत...