एक अधूरी मोहब्बत मेरी रह गई। मेरे दिल में तुम्हारी खलिश रह गई।। लिख रहा था तुम्हें देखकर जो ग़ज़ल। रुक जरा वो अधूरी गजल रह गई।। इस तरह से मुझे क्यों सताया गया। क्या मोहब्बत में मेरी कमी रह गई।। एक थी आरज़ू बस तुम्हें पाने की। आरज़ू दिल की दिल में दबी रह गई।। मैंने शाम ओ शहर ख्वाब देखा तेरा। सुन न पाया तू क्या ख्वाब में कह गई।। प्यार की एक इमारत बनी दिल में पर। ठोकरों से सितम के तेरे ढह गई।। मिलने वाला था साहिल 'रघुवंशी' मुझे। तेरी आंधी में कश्ती मेरी बह गई ।। #अधूरी_मोहब्बत काव्य संग्रह से एक कविता💕❣️ एक अधूरी मोहब्बत मेरी रह गई। मेरे दिल में तुम्हारी खलिश रह गई।। लिख रहा था तुम्हें देखकर जो ग़ज़ल। रुक जरा वो अधूरी गजल रह गई।।