मितवा ओ मितवा हमसे दूर न जइओ पास ही रहियो दूर न जइयो.. मेरी सुनो कभी रूठ न जाना जो कहूँ कुछ मैं तो मुह न बनाना अपनी समझ कर मुझे माफ़ करदीयो मेरे शुख-दुख में तुम यूँ ही साथ रहियो। अबकी बरष तो कुछ लेकर तुम आना न कुछ मिले फिर भी घर जल्दी आना आंगन में बैठे तुम हमसे नैन मिलइयो और कुछ प्रेम की बतिया भी कहियो। अभी तो मिलन के कुछ पल ही बीते तुम ही बताओ तुम्हरे बिन हम कैसे जीते जी भर के जीने की कसमें खईयो सात फेरों की तुम रस्मे निभइयो। माँ- बापू जी तो कुछ न कहे है पर दिन-रात तेरी ही बाट तके है उनके मन की दुःख तुम हर लियो आके जल्दी से उनके गले लग जइयो। ©prakash Jha मितवा ओ मितवा हमसे दूर न जइओ पास ही रहियो दूर न जइयो.. मेरी सुनो कभी रूठ न जाना जो कहूँ कुछ मैं तो मुह न बनाना अपनी समझ कर मुझे माफ़ करदीयो मेरे शुख-दुख में तुम यूँ ही साथ रहियो।