डाॅ. बशीर बद्र साहब : गायक : अनूप जालोटा साहब: वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है । हम इतनी दूर सितारों के पास रहते हो तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है। उसे किसी की मोहब्बत का एतबार नहीं उसे ज़माने ने शायद बहुत सताया है । कहाँ से आई ये ख़ुशबू ये घर की ख़ुशबू है इस अजनबी के अंधेरे में कौन आया है । तमाम उम्र मिरा दम इसी धुंऐं से घुटा वो इक चिराग़ था मैंने उसे बुझाया है । उतर भी आओ कभी आसमाँ के ज़ीने से तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है। महक रही है ज़मीं चाँदनी के फूलों से ख़ुदा किसी की मोहब्बत पे मुस्कुरा है। डाॅ. बशीर बद्र साहब : गायक : अनूप जालोटा साहब: वो चांदनी का बदन ख़ुशबुओं का साया है बहुत अज़ीज़ हमें है मगर पराया है । हम इतनी दूर सितारों के पास रहते हो तुम्हें ख़ुदा ने हमारे लिए बनाया है।