'लता' हूँ मैं काट दो तुम स्नेह जड़ें मेरी प्रेम-आच्छादित फ़िर भी रहूँगी बढूँगी कर स्पर्श तुम्हारा नई जड़ें में जमा ही लूँगी छायी रहूँगी प्रेम-घन सी आलिंगन में समेटे रहूँगी भूल जाओगे अपना पृथक अस्तित्व मैं यूँ तुम्हें नेह-रस सिंचित करूँगी..! 🌹 'लता' हूँ मैं काट दो तुम स्नेह जड़ें मेरी प्रेम-आच्छादित फ़िर भी रहूँगी बढूँगी कर स्पर्श तुम्हारा नई जड़ें में जमा ही लूँगी छायी रहूँगी प्रेम-घन सी आलिंगन में समेटे रहूँगी भूल जाओगे अपना पृथक अस्तित्व