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White फर्क सोच का बस इतना, सोच को अपनी कोई बदलता

White  फर्क सोच का बस इतना,
सोच को अपनी कोई बदलता नही।
अरे लड़की ही तो है,
क्या इसमें इतनी भी सहनशीलता नही।
क्यों सशक्त बनने की करती हो कोशिश,
दबी, सहमी रहो, घर से तुम निकलना नही।
कोई छेड़ दे, या गलत कहे,
चुपचाप रहो कुछ कहना नही।
गलती अवश्य तुम्हारी ही है,
नही होती गर छोटे कपड़े तुम पहनती नही।
चाहे कितनी भी सुरक्षित रहने की कर लो कोशिश,
बर्बरता से तुम बचोगी नही।
 लड़की हो तुम ,
पुरुषत्व के अहम से कभी आगे बढ़ोगी नही।

रश्मि वत्स।

©Rashmi Vats
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