जुदाई ******************* हा! हसरतें ना हुई पूरी, बेदर्द कैसा जमाना था। बेमुरब्बत बंदिशे आखिर, उन पर ही क्यों लगाना था।। बुनियाद-ए-दोस्ती पर अब, खड़ी है प्यार की मंजिल, मगर थे बेखबर सच से, दिल उनका दीवाना था। बिना दीदार के दोनों, भटकते मन से लगते थे। मिलीं नजरें भी गलती से तो सिर अपना झुकाना था।। ये बेबसी लाचार मन ही, चाहतों के बीज थे। मिलकर अब तो दोनों को ही प्रेम बाड़ी उगाना था। जुदाई अब तो दोनों को नहीं बर्दाश्त थी क्षण भर। सुलगती दिल में चिनगारी मोहब्बत की जलाना था। मगर मालिक की मर्जी भी अलग ही गुल खिलाए थी, ना हुआ पूरा कोई सपना खुली आंखों सजाना था। हुए ऐसे अलग दोनों, तड़प कर चीख ना निकली। मिलन के वास्ते अब तो नहीं दिखता बहाना था।। अरुण शुक्ल "अर्जुन" रत्यौरा करपिया प्रयागराज संदीप सिंह राजावत