#OpenPoetry "दो राहों की जिंदगी मेरी" दो राहों की ज़िंदगी मैं खुशियां तोल रही हूँ मैं, नई राह,नई जिंदगी में खुदको ढालना सीख रही हूँ मैं। नहीँ रह सकती जिन अपनों के बीना, अब उनके बिना रहना सीख रही हूँ मैं।। नई राह,नई जिदंगी..............................।1। पछियों की तरह सपनों के खुले आसमान मैं उड़ा करती थी, उन्हीं पँखों को विराम देना सीख रही हूँ मैं। जिन भाइयों के बिना एक पल भी रहना मुश्किल है, उन्हीं भाइयों से दुर रहकर जीना सीख रही हूँ मैं।। नई राह, नई जिंदगी.............................।।2।। जिन माँ-बाप की उंगली पकड़कर चलना सीखा, जिन्होंने जीने का मतलब सिखाया। आज उन्हीं के मान-सम्मान फक्र के लिए, खुदको समझदार बनाना सीख रही हूँ मैं।। नई राह, नई जिदंगी..............................।।3।। जिस बहन के बिना एक पल भी जीना मुश्किल हैं, आज उसी के बिना जीना सीख रही हूँ मैं। नई राह, नई जिंदगी............................।।4।। जिन दोस्तों के बिना एक पल भी जीना मुश्किल है, आज उन्हीं के बिना जीना सीख रही हूँ मैं।। नई राह, नई जिंदगी.........................।।5।। जिन यादों में बसी है जन्नत मेरी, आज उन्हीं यादो के सहारे खुश रहना सीख रही हुँ मैं। कभी नही सोचा था दूर हो जाऊँगी इन सबसे, परन्तु आज इस सच को अपनाना सीख रही हूँ मैं।। नई राह,नई जिंदगी..........................।।6।। #दो राहो की जिंदगी मेरी.... That emotions of girl after her marriage.... beautiful poem...🙂