मेरा शहर , मेरा देश के गीत सदियों पुराने हैं आज तो हर शहर में , इक रोज नए ठिकाने हैं भूल गये वो खुशबू मिट्टी की , जिसकी सादगी वर्षों पुरानी हैं तभी तो अब हर घर में , बस शहरों की ही कहानी हैं मैं लिख रही हूं ,मेरे शहर को जिसका इतिहास आज भी निराला हैं पर रजवाड़े के उस तख्त पर , अब कोन चलने वाला हैं बुजुर्गों का वो सादा जीवन , आज कहीं पर खो गया तभी तो परिवार का , हर फूल अलग हो गया हाँ, मैं भी शहर मे रहती हूँ , यहीं का जीवन बिताती हुँ पर जब भी त्योहार आता हैं , अपने गाँव में ही मनाती हुँ वो हरियाली मुझे बुलाती हैं , मैं पंछी सी उड़ जाती हुँ अगर, ये शहर है गीत मेरा , तो मैं मेरे गाँव को ग़जल बताती हुँ ©kanak lakhesar🖤 old one... #kanaklakhesar #village #poem #Life#Poetry