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तन्हा है मन अथाह सिंधु जल से गहरा है मन, है सबका

तन्हा है मन

अथाह सिंधु जल से गहरा है मन,
है सबका पर फिर भी तन्हा है मन।

रोते हुए ख्वाबों को मैंने संजोया है,
पिघले हुए मोती को भी मालों में पिरोया है,
मैं जग को मनाता अर्पण सर्वस्व है क्षण,
कभी अकेला नहीं पर फिर भी तन्हा है मन।

कहां कोई अपना है जो इस बात पर हुंकार करे,
मेरे ख्वाबगाह में शामिल होकर कौन धीरज धरे,
मैं कोमल स्वभाव हूं कहते सब है जन,
सब समझते है मुझे पर फिर भी तन्हा है मन।

मैं सुनसान गलियों का मालिक हूं बस सन्नाटे की है कहानी,
हर किसी ने तोड़ा है कि है सबने अपनी मनमानी,
मुझे सौंप के सारे जिम्मेदारियां निश्चिन्त है सब जन,
मेरे संग है सभी पर फिर भी तन्हा है मन। तन्हा है मन
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तन्हा है मन

अथाह सिंधु जल से गहरा है मन,
है सबका पर फिर भी तन्हा है मन।

रोते हुए ख्वाबों को मैंने संजोया है,
पिघले हुए मोती को भी मालों में पिरोया है,
मैं जग को मनाता अर्पण सर्वस्व है क्षण,
कभी अकेला नहीं पर फिर भी तन्हा है मन।

कहां कोई अपना है जो इस बात पर हुंकार करे,
मेरे ख्वाबगाह में शामिल होकर कौन धीरज धरे,
मैं कोमल स्वभाव हूं कहते सब है जन,
सब समझते है मुझे पर फिर भी तन्हा है मन।

मैं सुनसान गलियों का मालिक हूं बस सन्नाटे की है कहानी,
हर किसी ने तोड़ा है कि है सबने अपनी मनमानी,
मुझे सौंप के सारे जिम्मेदारियां निश्चिन्त है सब जन,
मेरे संग है सभी पर फिर भी तन्हा है मन। तन्हा है मन
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sbhaskar7100

S. Bhaskar

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