चौंककर चंचल मृगी सी धर तुरत दो चार पल पग, कहो प्रिय, क्या देखते ही खोल गृह-पट आ मिलोगी? खुली लट होगी तुम्हारी झूमती मुख चूमती सी, कहो प्रिय, क्या आ ललककर पुलक आलिंगन भरोगी? कहो, क्या इस जन्म की सब लोक-लज्जा, प्राण, मेरे हित वहाँ तुम त्याग दोगी? मिल गये उस जन्म में संयोगवश यदि, क्या मुझे पहचान लोगी ? जब विरह के युग बिता, युग-प्रेमियों के उर मिलेंगे। कौन जाने कल्प कितने बाहु-बन्धन में बंधेंगे? कहेंगे दृग-अधर हँस-मिल अश्रुमय अपनी कहानी, एक हो शम कम्प उर के मौन हो-होकर सुनेंगे? प्रलय होगी, सिन्धु उमड़ेंगे हृदय में, चेत होगा, फिर नयी जब सृष्टि होगी ! मिल गये उस जन्म में संयोगवश यदि, क्या मुझे पहचान लोगी ? ~ पंडित नरेन्द्र शर्मा Pandit narendra sharma