*बसंत के बहार में* हवा चली पत्तियां चलीं पेड़ भी थिरकने लगें प्रकृति मदहोश थी बसंत के बहार में प्यार का प्रथम बार अंकुरण जब हो रहा था कण-कण धड़क रहे थे प्यार के इजहार में हर्ष था उल्लास था प्रेम और विश्वास था धड़कनों में चाह थी प्रस्ताव था व्यवहार में रंग था उमंग था मिजाज बड़ा चंग था दोस्ती की आड़ थी प्यार की दरकार में ईर्ष्या न द्वेष था छल न फरेब था हर प्राणी मस्त था जीत और हार में प्यार का प्रथम बार अंकुरण जब हो रहा था प्रकृति मदहोश थी बसंत के बहार में ©Narendra Sonkar *बसंत के बहार में*