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मैं अनपढ़ मै किताबो को पढ न पाता हूं सवालों में फं

मैं अनपढ़ मै किताबो को पढ न पाता हूं
सवालों में फंस कर कुछ समझ न पाता हूं। 

ऐसा पढ़ा लिखा समाज मुझे समझ न आता है
अपनो से शतरंज का खेल मुझे न खेलना आता है। 

एक चेहरे के पीछे दूसरा चेहरा छिपाए रहते हैं
किसी की कमजोरी को अपना धंधा बनाए रखते हैं। 

अपनो से चलाकियां करना मै सीख न पाया हूं
चंद खुशियों के लिए कभी किसी को दुःख न पहुंचाया हूं। 

एक हाथ में खंजर तो एक हाथ में फूल न छिपाया हूं। 
गले लग कर पीठ पर वार करना न सीख पाया हूं। 

अपने हो या पराए किसी को तकलीफ न पहुंचाया हूं। 
झूठ का सहारा लेकर कभी खुशियां न लाया हूं। 

मैं अनपढ़ ही सही पढ़ा लिखा बन कर किसी को न डुबाया हूं। 
जीवन की किताब को पढ़ कर इंसानियत को पढ़ कर आया हूँ।

©Raushan Mehra
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