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कई बार ऐसा महसूस किया है की लखनवी तहज़ीब खोखली दिखा

कई बार ऐसा महसूस किया है की लखनवी तहज़ीब खोखली दिखावटी व बनावटी बला नही है। इसमें बहुत मज़बूत सम्बल है तजुर्बे के और इनमे दानाई का ज़ख़ीरा पिन्हा है।
आज मैं सिर्फ एक रुख की बात करना चाहता हूं और वो इसी समूह की किसी टिप्पणी से ही जन्मा है।
जब हम देखते है की हमारी बात कोई दूसरा दोहरा रहा है इस तरह की वह उसका जना है तो हमारी मानसपटल पर दो तरह की मुदाफत होती है।
एक तरफ हमें नाज़ होता है की हमारी बात इतनी पसन्द करी गई है की लोग उसे दोहरा रहे है और इस क़दर कीमती पायी गयी है की लोग उसे चुरा रहे है और हमारी वो सोच इतनी पारस है कि उन्हें भी कुंदन बना रही है। 
दूसरी तरफ हमे ये डाका लगता है, हमे ये लगता है हमी के सहारे चढ़ कर हमी से क़द निकाल रहे है और हममे जैसे कोई कमी कर दे रहे हैं।
अब मुद्दे पर...पहली व दूसरी प्रतिक्रिया आमतौर पर कब होती है।
पहली तब होती जब करने वाला आपका अपना हो, आपकी नजर में उसकी इज़्ज़त को, आपको वो अपने से ज़्यादा दानिशमंद व कामयाब दिखे।
दूसरी तब जब वो मुख़ालिफीन हो, आपकी नजर में कमज़र्फ हो,व इखलाक़ी मायने में छोटा हो या नाकामयाब हो।
पहली प्रतिक्रिया मसर्रत का बायस है और दूसरी...
अब मूल हमारी तहज़ीब का खुलूस और दूसरे को अपने से पहला समझना व उस तरह से बरताव करना है। 
 ये हर समय सम्भव कैसे है।  Fake it till you make it इस फॉर्मूले का ये सही समय है उपयोग का।
आखिरकर क्यो? सिर्फ अपनी खुशी के लिए और उसे दोबाला करने के लिए दूसरे को खुश करके।
क्या ज़िन्दगी कृत्रिम तरीक़े से जीने की राय नही है ये?!?! मालूम नही क्या आप दुनिया मे बेलिबास घूमते है कंघी शेव प्रसाधन वगैरह से अछूते है ?
Soft skills are more pertinent to success than others... ये एक अकाट्य सत्य है।
हमेशा कैसे सम्भव हो ? अपनी पूरी ज़िंदगी मे कितनी बार हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए या कायम रखने के लिए जद्दोजहद करी है या अपनी या अपने परिवार की गैरत और सलामती के लिए  तेग़ तलवार उठानी पड़ी है । आमतौर से तो ज़िन्दगी आमतौर सी ही चलती है और वहाँ अवश्यमेव सम्भव है बल्कि अवश्यम्भावी भी है।
दो तीन और कारण है जो कभी आगे।
मुख्तलिफ राय का भी इस्तक़बाल है।  कृपया साझा करें।
।।मौजज़ा©।।
कई बार ऐसा महसूस किया है की लखनवी तहज़ीब खोखली दिखावटी व बनावटी बला नही है। इसमें बहुत मज़बूत सम्बल है तजुर्बे के और इनमे दानाई का ज़ख़ीरा पिन्हा है।
आज मैं सिर्फ एक रुख की बात करना चाहता हूं और वो इसी समूह की किसी टिप्पणी से ही जन्मा है।
जब हम देखते है की हमारी बात कोई दूसरा दोहरा रहा है इस तरह की वह उसका जना है तो हमारी मानसपटल पर दो तरह की मुदाफत होती है।
एक तरफ हमें नाज़ होता है की हमारी बात इतनी पसन्द करी गई है की लोग उसे दोहरा रहे है और इस क़दर कीमती पायी गयी है की लोग उसे चुरा रहे है और हमारी वो सोच इतनी पारस है कि उन्हें भी कुंदन बना रही है। 
दूसरी तरफ हमे ये डाका लगता है, हमे ये लगता है हमी के सहारे चढ़ कर हमी से क़द निकाल रहे है और हममे जैसे कोई कमी कर दे रहे हैं।
अब मुद्दे पर...पहली व दूसरी प्रतिक्रिया आमतौर पर कब होती है।
पहली तब होती जब करने वाला आपका अपना हो, आपकी नजर में उसकी इज़्ज़त को, आपको वो अपने से ज़्यादा दानिशमंद व कामयाब दिखे।
दूसरी तब जब वो मुख़ालिफीन हो, आपकी नजर में कमज़र्फ हो,व इखलाक़ी मायने में छोटा हो या नाकामयाब हो।
पहली प्रतिक्रिया मसर्रत का बायस है और दूसरी...
अब मूल हमारी तहज़ीब का खुलूस और दूसरे को अपने से पहला समझना व उस तरह से बरताव करना है। 
 ये हर समय सम्भव कैसे है।  Fake it till you make it इस फॉर्मूले का ये सही समय है उपयोग का।
आखिरकर क्यो? सिर्फ अपनी खुशी के लिए और उसे दोबाला करने के लिए दूसरे को खुश करके।
क्या ज़िन्दगी कृत्रिम तरीक़े से जीने की राय नही है ये?!?! मालूम नही क्या आप दुनिया मे बेलिबास घूमते है कंघी शेव प्रसाधन वगैरह से अछूते है ?
Soft skills are more pertinent to success than others... ये एक अकाट्य सत्य है।
हमेशा कैसे सम्भव हो ? अपनी पूरी ज़िंदगी मे कितनी बार हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए या कायम रखने के लिए जद्दोजहद करी है या अपनी या अपने परिवार की गैरत और सलामती के लिए  तेग़ तलवार उठानी पड़ी है । आमतौर से तो ज़िन्दगी आमतौर सी ही चलती है और वहाँ अवश्यमेव सम्भव है बल्कि अवश्यम्भावी भी है।
दो तीन और कारण है जो कभी आगे।
मुख्तलिफ राय का भी इस्तक़बाल है।  कृपया साझा करें।
।।मौजज़ा©।।
atulkaul1881

Atul Kaul

New Creator

ये हर समय सम्भव कैसे है। Fake it till you make it इस फॉर्मूले का ये सही समय है उपयोग का। आखिरकर क्यो? सिर्फ अपनी खुशी के लिए और उसे दोबाला करने के लिए दूसरे को खुश करके। क्या ज़िन्दगी कृत्रिम तरीक़े से जीने की राय नही है ये?!?! मालूम नही क्या आप दुनिया मे बेलिबास घूमते है कंघी शेव प्रसाधन वगैरह से अछूते है ? Soft skills are more pertinent to success than others... ये एक अकाट्य सत्य है। हमेशा कैसे सम्भव हो ? अपनी पूरी ज़िंदगी मे कितनी बार हिंदुस्तान की आज़ादी के लिए या कायम रखने के लिए जद्दोजहद करी है या अपनी या अपने परिवार की गैरत और सलामती के लिए तेग़ तलवार उठानी पड़ी है । आमतौर से तो ज़िन्दगी आमतौर सी ही चलती है और वहाँ अवश्यमेव सम्भव है बल्कि अवश्यम्भावी भी है। दो तीन और कारण है जो कभी आगे। मुख्तलिफ राय का भी इस्तक़बाल है। कृपया साझा करें। ।।मौजज़ा©।।