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' हक़ीकत ' मौत सब दूरियों को.. मिटा देती है ज़िस्

' हक़ीकत ' 


मौत सब दूरियों को.. मिटा देती है
ज़िस्म मिट्टी में सबका.. मिला देती है, 

मौत करती नहीं.. किसी से भेदभाव 
एक बराबर में सबको.. सुला देती है,  

ख़ामख़ा लिए अभिमान.. फ़िरते हैं हम 
कोई कुछ भी नहीं.. ये बता देती है, 

या हो राजा कोई.. या कोई रंक हो 
अच्छे अच्छो को इक दिन.. हरा देती है,

इक दूजे से जलने का.. क्या फायदा 
अंततः मौत सब कुछ.. बुझा देती है !!

                             दिवाकर..✍️✍️ #हक़ीकत 

दिवाकर.. ✍️✍️
' हक़ीकत ' 


मौत सब दूरियों को.. मिटा देती है
ज़िस्म मिट्टी में सबका.. मिला देती है, 

मौत करती नहीं.. किसी से भेदभाव 
एक बराबर में सबको.. सुला देती है,  

ख़ामख़ा लिए अभिमान.. फ़िरते हैं हम 
कोई कुछ भी नहीं.. ये बता देती है, 

या हो राजा कोई.. या कोई रंक हो 
अच्छे अच्छो को इक दिन.. हरा देती है,

इक दूजे से जलने का.. क्या फायदा 
अंततः मौत सब कुछ.. बुझा देती है !!

                             दिवाकर..✍️✍️ #हक़ीकत 

दिवाकर.. ✍️✍️