तीन कुण्डलिया छंद (1) होली की शुभकामना,कर लीजे स्वीकार। नफ़रत का हो ख़ात्मा,जागे उर में प्यार।। जागे उर में प्यार,हार खाये दुर्बलता। सुख का हो उजियार,रहे दुख निज कर मलता।। कह सतीश कविराय,बोलिये मीठी बोली। सभी रहें खुशहाल,मने कुछ ऐसी होली।। (2) होली हम इस वर्ष की,कैसे खेलें मीत। साथ नहीं अपने अभी,दिखे नदारद प्रीत।। दिखे नदारद प्रीत,गीत उर में क्या आये। होली की हुड़दंग,हमें बिल्कुल नहिं भाये। कह सतीश कविराय,नहीं सँग में हमजोली। ऐसे में क्या मीत,कहो हम खेलें होली।। (3) रेवा तट पर जा बसें,मन में उठती चाह। काश! हमें दिल की नयी,मिले मधुरतम राह।। मिले मधुरतम राह,तभी पावन हो होली। रेवा तट पर धूम,मचाये मन की टोली।। कह सतीश कविराय,ईश की हो कुछ सेवा। जीवन हो ख़ुशहाल,कृपारत हो माँ रेवा।। ©सतीश तिवारी 'सरस' #कुण्डलिया_छंद