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आज भी दरवाजे से छुपकर देखती है रोज मुझे! गाँव का इ

आज भी दरवाजे से छुपकर देखती है रोज मुझे!
गाँव का इश्क़ है जनाब शहर की नौटंकियां नहीं।
#Moh_akshay
आज भी दरवाजे से छुपकर देखती है रोज मुझे!
गाँव का इश्क़ है जनाब शहर की नौटंकियां नहीं।
#Moh_akshay