शापित रहा है, भूत उसका.., वर्तमान के शाप लिए, और..भविष्य, शापित मन लिए उसका, उसके तन के साथ, चलता रहा, उम्र के अंतिम छोर तक, उसका भयभीत मौन, पहनकर.. शब्दों के लिबास, दौड़ता है निर्भीक, उसकी अतीत की परछाइयों संग, और..खोजती है वो, समर्पण के पत्थरों से, घाव खाया, अपना लहुलूहान बदन, #पूर्ण_रचना_अनुशीर्षक_मे #पीर_मंजरी शापित रहा है, भूत उसका.., वर्तमान के शाप लिए, और..भविष्य,