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अजनबी राहों का पता क्यूं पूछते हो, पुराने जख्मों


अजनबी राहों का पता क्यूं पूछते हो,
पुराने जख्मों को क्यूं कुरेदते हो ...।
क्यूं बांधते हो तुम उसे मन्नत के धागों से,
अपनी अरदास उसके लिए तुम क्यूं सहेजते हो...।
अरसों से आंगन में बीज को  दरख़्त बनते देखा है मैंने ,
बच्चे हो तुम अभी बदलाव की आहटों को नहीं समझते हो ....।
कई गुलशनों को बारिश में भी उजड़ते देखा है ,
ख़ुद ही के डाढ़ से कांटे निकलते देखा है..।
आईना उतर गया हलक तक खुद ही मिजाज़ - ए - मर्ज़ जांचने ,
मुस्कान तपिश की देखकर पूछा -
 क्या तुम वाकई वहीं हो ,जो तुम समझते हो .....।
ख़्वाबों के पीछे तुम्हे अंगारों पर चलते देखा है ,
अश्कों की बूंदों में मैंने रेगिस्तां को भी बहते देखा है ...।
क्यूं अनजाने शहरों की चौखटों पर ठहर जाता कोई ,
क्यूं फलक से जमीं को निहारता कोई... ।
क्यूं अनसुने घावों को ख़ुदा बनके सहलाता कोई ,
क्यूं एहसासों के समंदर में मोती सा छिप जाता कोई ....।
क्यूं ढूंढते हो फरिश्तों को तुम अपनो की भीड़ में ,
अपनी ही तलाश में तुम क्यूं भटकते हो ...।
आजकल सर्द महज़ ये बेवक्त मौसमी बारिशें हैं अंजली
जब रगों में सैलाब है , सुकून की नब्जों को तुम क्यूं टटोलते हो..।।@Anjali Rai
Angel ❤️ - अपनी तलाश में हम ✍️
..............❤️.............
अजनबी राहों का पता क्यूं पूछते हो,
पुराने जख्मों को क्यूं कुरेदते हो ...।
क्यूं बांधते हो तुम उसे मन्नत के धागों से,
अपनी अरदास उसके लिए तुम क्यूं सहेजते हो...।
अरसों से आंगन में बीज को  दरख़्त बनते देखा है मैंने ,
बच्चे हो तुम अभी बदलाव की आहटों को नहीं समझते हो ....।

अजनबी राहों का पता क्यूं पूछते हो,
पुराने जख्मों को क्यूं कुरेदते हो ...।
क्यूं बांधते हो तुम उसे मन्नत के धागों से,
अपनी अरदास उसके लिए तुम क्यूं सहेजते हो...।
अरसों से आंगन में बीज को  दरख़्त बनते देखा है मैंने ,
बच्चे हो तुम अभी बदलाव की आहटों को नहीं समझते हो ....।
कई गुलशनों को बारिश में भी उजड़ते देखा है ,
ख़ुद ही के डाढ़ से कांटे निकलते देखा है..।
आईना उतर गया हलक तक खुद ही मिजाज़ - ए - मर्ज़ जांचने ,
मुस्कान तपिश की देखकर पूछा -
 क्या तुम वाकई वहीं हो ,जो तुम समझते हो .....।
ख़्वाबों के पीछे तुम्हे अंगारों पर चलते देखा है ,
अश्कों की बूंदों में मैंने रेगिस्तां को भी बहते देखा है ...।
क्यूं अनजाने शहरों की चौखटों पर ठहर जाता कोई ,
क्यूं फलक से जमीं को निहारता कोई... ।
क्यूं अनसुने घावों को ख़ुदा बनके सहलाता कोई ,
क्यूं एहसासों के समंदर में मोती सा छिप जाता कोई ....।
क्यूं ढूंढते हो फरिश्तों को तुम अपनो की भीड़ में ,
अपनी ही तलाश में तुम क्यूं भटकते हो ...।
आजकल सर्द महज़ ये बेवक्त मौसमी बारिशें हैं अंजली
जब रगों में सैलाब है , सुकून की नब्जों को तुम क्यूं टटोलते हो..।।@Anjali Rai
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अजनबी राहों का पता क्यूं पूछते हो,
पुराने जख्मों को क्यूं कुरेदते हो ...।
क्यूं बांधते हो तुम उसे मन्नत के धागों से,
अपनी अरदास उसके लिए तुम क्यूं सहेजते हो...।
अरसों से आंगन में बीज को  दरख़्त बनते देखा है मैंने ,
बच्चे हो तुम अभी बदलाव की आहटों को नहीं समझते हो ....।