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मैं अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हूँ यारों अपने नग़मे खुद

मैं अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हूँ यारों
अपने नग़मे खुदी को सुनाता हु यारोँ
अपनी हर नज़्म को दिल की दराजों में,
बढे करीने से सजाकर अक़्सर   
होले से परदों
को गिराता हु यारो।
हाँ में अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हु यारों। नगमा ए दिल
मनीषपाल सिंह(मानव)
मैं अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हूँ यारों
अपने नग़मे खुदी को सुनाता हु यारोँ
अपनी हर नज़्म को दिल की दराजों में,
बढे करीने से सजाकर अक़्सर   
होले से परदों
को गिराता हु यारो।
हाँ में अक़्सर यूँ ही गुनगुनाता हु यारों। नगमा ए दिल
मनीषपाल सिंह(मानव)